Women’s Day 2025: हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों, संघर्षों और उपलब्धियों का सम्मान करना है। इस दिन को लेकर बड़े-बड़े आयोजनों की घोषणाएँ होती हैं, सरकारें नए कानूनों की बातें करती हैं, और सोशल मीडिया पर “नारी शक्ति” का गुणगान होता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह महज एक औपचारिकता बनकर रह गया है, या सच में महिलाओं के हालात सुधर रहे हैं?
भारत में महिलाओं की स्थिति को समझने के लिए हमें केवल नारों और अभियानों से आगे बढ़कर वास्तविकता पर नजर डालनी होगी। देश की आधी आबादी आज भी यौन शोषण, घरेलू हिंसा, दहेज, ऑनर किलिंग, एसिड अटैक और कार्यस्थल पर उत्पीड़न जैसी समस्याओं से जूझ रही है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि हम यह विश्लेषण करें कि क्या भारत में महिलाएँ वास्तव में सुरक्षित हैं?
भारत में महिलाओं की सुरक्षा: आँकड़े क्या कहते हैं?
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2022 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कोई खास कमी नहीं आई है। बल्कि कुछ अपराधों में वृद्धि दर्ज की गई है।
Women’s Day 2025: महिलाओं के खिलाफ अपराधों के प्रमुख आँकड़े

- कुल अपराध: 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,45,256 मामले दर्ज किए गए।
- बलात्कार (Rape) के मामले: 2022 में 31,878 केस दर्ज हुए, यानी हर दिन लगभग 87 महिलाएँ बलात्कार का शिकार हुईं।
- घरेलू हिंसा (Domestic Violence): 2024 में राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) को महिलाओं के खिलाफ अपराधों की 25,743 शिकायतें मिलीं, जिनमें से 6,237 (24%) घरेलू हिंसा से संबंधित थीं।
- दहेज उत्पीड़न: 2024 में NCW को दहेज उत्पीड़न की 4,383 (17%) शिकायतें प्राप्त हुईं।
- महिलाओं के अपहरण: 2022 में महिलाओं के अपहरण की 69,677 घटनाएं हुईं।
- राज्यवार आंकड़े: 2022 में उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक 65,743 मामले दर्ज किए गए, इसके बाद महाराष्ट्र (45,331), राजस्थान (45,058), पश्चिम बंगाल (34,738) और मध्य प्रदेश (32,765) का स्थान रहा।
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत में महिलाओं की सुरक्षा आज भी एक गंभीर मुद्दा बनी हुई है।
Women’s Day 2025: महिलाओं की सुरक्षा पर कानून और उनकी वास्तविकता
भारत में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई सख्त कानून बनाए गए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- धारा 354 (IPC): महिलाओं से छेड़छाड़ पर कड़ी सजा।
- धारा 376 (IPC): बलात्कार के दोषियों को सख्त सजा।
- दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961: दहेज लेना या देना अपराध।
- कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम, 2013: वर्कप्लेस पर सुरक्षा।
- निर्भया फंड: महिला सुरक्षा के लिए विशेष कोष।
हालांकि, ग्राउंड रियलिटी देखें तो इन कानूनों का क्रियान्वयन कमजोर है। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने में ही महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई मामलों में अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त होता है, जिससे पीड़िताओं को न्याय नहीं मिल पाता।
महिला सशक्तिकरण: केवल नारों से नहीं, ठोस बदलाव से संभव

भारत में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चर्चा तो बहुत होती है, लेकिन क्या जमीनी स्तर पर बदलाव दिख रहा है?
✔ शिक्षा: महिलाओं को सशक्त करने के लिए शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण हथियार है। लेकिन भारत में अब भी कई जगहों पर लड़कियों की शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती।
✔ आर्थिक आत्मनिर्भरता: महिलाएँ आत्मनिर्भर बनेंगी, तो वे अपने खिलाफ हो रहे अपराधों का मजबूती से सामना कर सकेंगी।
✔ सोशल मीडिया और डिजिटल सशक्तिकरण: इंटरनेट के माध्यम से महिलाएँ अपनी आवाज उठा रही हैं। #MeToo और #WomenSafety जैसे कैंपेन ने समाज में जागरूकता बढ़ाई है।
✔ सख्त कानूनों का पालन: कानून केवल किताबों में न रह जाएं, बल्कि उनका प्रभावी क्रियान्वयन हो।
Women’s Day 2025: क्या महिलाएँ सच में सुरक्षित हैं?
आंकड़ों और वास्तविकता को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि भारत में महिलाएँ पूरी तरह सुरक्षित हैं। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में जागरूकता बढ़ी है, लेकिन अब भी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
महिला सुरक्षा केवल एक सरकारी जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है। जब तक मानसिकता नहीं बदलेगी, तब तक कोई भी कानून महिलाओं को पूरी सुरक्षा नहीं दे सकता।अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस केवल एक औपचारिकता न रह जाए, बल्कि यह अवसर बने महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण पर गंभीरता से काम करने का।
अब समय आ गया है कि महिला सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए, ताकि “नारी शक्ति” केवल नारों तक सीमित न रहकर हकीकत में बदले।