Pahalgam Attack: जब किसी वीर की शहादत की ख़बर आती है, तो पूरा देश सिहर उठता है। टीवी पर उबलते एंकर, सड़कों पर गूंजते नारे, और सोशल मीडिया पर देशभक्ति की बाढ़ आ जाती है—”पाकिस्तान मुर्दाबाद”, “बदला लो” जैसे जज़्बात हावी हो जाते हैं। लेकिन इन नारों और आक्रोश के बीच एक सवाल छूट जाता है— क्या वाकई हम आतंकवाद के खिलाफ कोई स्थायी समाधान ढूंढ पा रहे हैं, या हर हमले के बाद बस प्रतीकात्मक प्रतिक्रिया देकर शांत हो जाते हैं?
पुलवामा, उरी, पठानकोट से लेकर Poonch-अटैक तक, एक के बाद एक घटनाएं ये बताने के लिए काफी हैं कि आतंकवाद की समस्या सिर्फ सीमा पार से नहीं, बल्कि हमारी रणनीति, सिस्टम और खुफिया एजेंसियों की कार्यप्रणाली से भी जुड़ी हुई है।
आतंकवाद पर देश की रणनीति: बदल पाई है पुलवामा के बाद?
14 फरवरी 2019 को पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर हुए आत्मघाती हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इस हमले में 40 से ज्यादा जवान शहीद हुए। इसके बाद भारत ने बालाकोट में एयरस्ट्राइक कर पाकिस्तान को सीधी चेतावनी दी। 5 अगस्त 2019 को धारा 370 हटाकर केंद्र सरकार ने यह संदेश देने की कोशिश की कि अब कश्मीर में अलगाववाद और आतंक की जमीन खत्म की जा रही है।
लेकिन क्या इससे आतंक की जड़ें हिलीं?
Pahalgam Attack: 370 हटने के बाद भी घाटी में सक्रियता क्यों बरकरार?

धारा 370 हटाने का उद्देश्य सिर्फ राजनीतिक नहीं था, यह एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का हिस्सा भी था। परंतु वास्तविकता यह है कि इसके बाद भी कश्मीर में टारगेट किलिंग, मुठभेड़ और घुसपैठ की घटनाएं थमी नहीं हैं।
राज्यसभा में गृह मंत्रालय के आंकड़े (2023)
2020 में जम्मू-कश्मीर में 244 आतंकी घटनाएं
2021 में 229
2022 में 125 घटनाएं हुईं
2023 में PoK से आतंकियों की घुसपैठ फिर बढ़ी
यानी हमले कम तो हुए, लेकिन पूरी तरह बंद नहीं।
हर बड़े आतंकी हमले के बाद उठता सवाल- एजेंसियों की विफलता या सिस्टम की ढिलाई?
इतनी बड़ी साजिश को एजेंसियां समय रहते पकड़ क्यों नहीं पाईं?’
पठानकोट और उरी अटैक में पहले से चेतावनी दी गई थी, लेकिन कार्रवाई देर से हुई
पुलवामा हमले में स्थानीय सहयोग से विस्फोटक तैयार किया गया, बावजूद इसके स्थानीय इंटेलिजेंस एक्टिव नहीं हो पाई।हाल की पूंछ अटैक में आतंकियों को 48 घंटे तक इलाके में रहकर हमला करने का मौका मिला—यह किसी बड़ी सुरक्षा चूक की ओर इशारा करता है।
Pahalgam Attack: क्या सिर्फ पाकिस्तान जिम्मेदार? या हमारे अंदर भी कमज़ोर कड़ी है?

बेशक पाकिस्तान की ISI और आतंकी संगठन जैसे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद इस युद्ध में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, लेकिन:
- स्थानीय युवाओं का कट्टरपंथ की ओर मुड़ना,
- सोशल मीडिया और ड्रोन के जरिए सीमा पार से हथियारों की सप्लाई,
- घाटी में जमीनी खुफिया नेटवर्क की कमी,
- और कभी-कभी राजनीतिक उद्देश्य से सुरक्षा मामलों की अनदेखी —ये सब मिलकर हमारी अपनी जिम्मेदारियों पर भी सवाल खड़ा करते हैं।
धरना प्रदर्शन और भावनात्मक राजनीति से कितना समाधान?

हर आतंकी हमले के बाद धरने, कैंडल मार्च, और नेताओं की मीडिया बयानबाजी आम हो चुकी है। कुछ संगठन इसे राजनीतिक लाभ के लिए भावनात्मक माहौल बनाने का ज़रिया भी बनाते हैं।
Pahalgam Attack: क्या इस तरह आतंक का समाधान होगा?
या इसके लिए जमीनी रणनीति, आधुनिक खुफिया तकनीक, और स्थायी समाधान की आवश्यकता है? आतंकवाद पर सिर्फ पाकिस्तान को कोसना काफी नहीं। जब तक हम अपनी प्रणाली की कमजोरियों को पहचानकर उन्हें दूर नहीं करेंगे, तब तक आतंक का यह चक्र चलता रहेगा। पुलवामा, उरी, और पूंछ जैसे हमले हमें चेताते रहेंगे कि देश की सुरक्षा नारों से नहीं, नीतियों और निष्पक्ष कार्रवाई से सुनिश्चित होती है।
Aatank a samadhan to sirf education hai
aap bhul rhae hai ki bhut se aatnakwadi pade likhe or achi dgree leke bhi bithe hote hai