India vs Pakistan: क्रिकेट मैच पर उठा बड़ा सवाल – एशिया कप में होने वाले भारत–पाकिस्तान क्रिकेट मैच को लेकर अब सियासी बहस तेज हो गई है। यह सिर्फ खेल नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा और राजनीति से जुड़ा अहम मुद्दा बन गया है। सवाल उठ रहा है कि क्या मोदी सरकार ने पुलवामा और पहलगाम हमलों के बाद किए गए अपने ही बयानों को भुला दिया है?
India vs Pakistan: पुलवामा–पहलगाम और मोदी सरकार के वादे

पुलवामा और पहलगाम जैसे आतंकी हमलों के बाद मोदी सरकार ने कहा था कि पाकिस्तान से न कोई व्यापार होगा और न ही कोई संपर्क। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया था—“मैं देश नहीं झुकने दूंगा।”
गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाने की बात कही थी और हिंदू धर्म–देशभक्ति के नाम पर पाकिस्तान को अलग–थलग करने का दावा किया था।
लेकिन आज वही सरकार पाकिस्तान से क्रिकेट खेलने को तैयार है।
क्या संसद तक ही सीमित है देशभक्ति?

सवाल यह है कि क्या देशभक्ति सिर्फ संसद तक सीमित रह गई है? भाषणों में पाकिस्तान दुश्मन नंबर एक, और मैदान में वही पाकिस्तान “खेल का साथी”—क्या यही मोदी सरकार की नीति है?
जय शाह और ICC की भूमिका

गृह मंत्री अमित शाह संसद में देशभक्ति की बातें करते हैं, लेकिन क्या वही देशभक्ति उनके बेटे जय शाह तक नहीं पहुंचा सके? जय शाह, जो आज ICC के चेयरमैन हैं, पाकिस्तान से क्रिकेट खेलने के फैसले में अहम भूमिका निभाते हैं।
क्या देशभक्ति सिर्फ राजनीति तक सीमित है, खेल के फैसलों में उसका कोई मतलब नहीं?
India vs Pakistan: शहादत और परिवारों का दर्द

पुलवामा और पहलगाम हमलों में जिन परिवारों ने अपने बेटे खो दिए, क्या पाकिस्तान से क्रिकेट खेलना उनकी शहादत का सम्मान है?
क्या आज उनका सिर ऊंचा हो रहा है या उन्हें लगता है कि सरकार ने उनके बलिदान को भुला दिया?
India vs Pakistan: मोदी सरकार पर दोहरा रवैया का आरोप
जनता पूछ रही है—कल तक नेता कहते थे “धर्म पूछ कर मारा गया”, आज वही पाकिस्तान के साथ मैदान साझा कर रहे हैं। क्या यह सिर्फ बेरोजगारी और महंगाई से ध्यान भटकाने का खेल है?
साफ है कि मोदी सरकार की कथनी और करनी में बड़ा अंतर है।
नतीजा: जनता को बेवकूफ़ बनाने का खेल?
भारत–पाकिस्तान क्रिकेट मैच ने एक बार फिर सरकार की नीति पर सवाल खड़ा कर दिया है। वोट के वक्त पाकिस्तान दुश्मन, लेकिन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में वही पाकिस्तान खेल का साथी।
तो सवाल वही है—क्या मोदी सरकार पुलवामा और पहलगाम की कसमें भूल गई है? क्या देशभक्ति सिर्फ संसद के भाषणों तक सीमित रह गई है
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