India-US Trade: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में ट्वीट कर कहा है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार बाधाओं को दूर करने की वार्ता चल रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके “बहुत अच्छे मित्र” हैं। सुनने में यह बयान दोस्ती और साझेदारी का संदेश देता है, लेकिन असलियत कहीं अधिक कड़वी है।
हर बार टैरिफ, फिर वार्ता – यह कैसी साझेदारी?

सवाल यह है कि क्या हर बार अमेरिका हमें टैरिफ लगाकर झुकाने की कोशिश करेगा और फिर भारत की सरकार इसे कूटनीति की जीत बताकर जनता को समझाने निकलेगी?
2019 में अमेरिका ने भारत को GSP (जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस) से बाहर कर दिया था।
कई बार भारतीय स्टील और एल्युमिनियम पर अतिरिक्त शुल्क लगाया गया।
अमेरिकी कंपनियाँ लगातार डेटा लोकलाइजेशन और ई-कॉमर्स नियमों पर दबाव डालती रही हैं।
इन सबके बावजूद जब अमेरिका बातचीत की बात करता है, तो दिल्ली की राजनीति में इसे विदेश नीति की सफलता के रूप में पेश किया जाता है।
India-US Trade: भाजपा का गुणगान बनाम ज़मीनी सच्चाई
ट्रंप के इस ट्वीट के बाद भाजपा और सरकार समर्थक हल्के इसे मोदी की कूटनीति की जीत बताने लगेंगे। टीवी डिबेट्स में इसे “भारत की वैश्विक ताकत” के तौर पर दिखाया जाएगा।
लेकिन हकीकत यह है कि भारत की विदेश नीति कमज़ोर साबित हो रही है। अमेरिका हर बार दबाव बनाता है, शुल्क लगाता है, और फिर बातचीत के नाम पर हमें वही करना पड़ता है जो वह चाहता है।
- क्या यह विदेश नीति की विफलता नहीं?
अगर हर बार दबाव झेलकर ही वार्ता करनी है, तो यह कैसे कह सकते हैं कि भारत मज़बूत स्थिति में है?http://read this : https://aazadpatrkar.com/pahalgam-terrorist-attack/
क्या भारत का हित पहले आता है या अमेरिकी दबाव?

India-US Trade क्या विदेश नीति केवल फोटो-ऑप और कार्यक्रमों तक सीमित हो गई है?
क्या हम केवल ट्रंप-मोदी दोस्ती का गुणगान करते रहेंगे और असली आर्थिक झटकों को नज़रअंदाज़ करेंगे?
ये सवाल विपक्ष ही नहीं, जनता भी पूछ रही है।
India-US Trade नतीजा: गुनगान से आगे बढ़ना होगा
भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता को लेकर उत्साह ठीक है, लेकिन यह सोच लेना कि ट्रंप का ट्वीट ही हमारी कूटनीतिक सफलता है—यह ग़लतफ़हमी है।
सच यह है कि जब तक भारत अपने आर्थिक हितों को पहले नहीं रखेगा और बार-बार “झुकने की नीति” नहीं छोड़ेगा, तब तक अमेरिका हर बार टैरिफ लगाकर हमें उसी स्थिति में धकेलेगा।
विदेश नीति की सफलता ट्वीट्स और बयानों से नहीं, बल्कि इस बात से तय होगी कि क्या भारत बिना दबाव झुके अपने हितों की रक्षा कर पाया या नहीं।