HP Revised Pay 2025: कल तक जिन कर्मचारियों के हितों की कसमें खाकर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने सत्ता का सुख भोगा, आज उन्हीं कर्मचारियों के अधिकारों को सचिवालय की फाइलों में कुचल दिया जा रहा है।
लगभग 14,000 कर्मचारियों पर सीधा असर डालने वाला यह फैसला न केवल आर्थिक चोट है बल्कि कर्मचारियों और जनता के साथ खुलेआम किया गया विश्वासघात भी है।
सरकार का बेरहम फैसला: जेब से 15 हज़ार तक की कटौती

- HP Civil Services (Revised Pay) Second Amendment Rules, 2025 के तहत सरकार ने उच्च वेतनमान की व्यवस्था रद्द कर दी।
- असर: लगभग 14,000 कर्मचारी प्रभावित।
- नुकसान: ₹10–15 हज़ार मासिक।
- पिछली तारीख से लागू: 1 जनवरी 2016 से।
- यानी कर्मचारियों की न केवल आज की कमाई पर, बल्कि उनकी पिछली मेहनत पर भी सरकार ने गाज गिरा दी।
HP Revised Pay Rules 2025: आर्थिक विवशता या राजनीतिक पाखंड?
सरकार कहती है—राज्य पर ₹90,000 करोड़ से ज़्यादा कर्ज़ है, इसलिए कटौती ज़रूरी है।
लेकिन बड़ा सवाल यह है:जब नेताओं की सैलरी बढ़ाई जाती है, तब क्या यह बोझ नहीं दिखता?
जब मंत्रियों और विधायकों को DA का लाभ दिया जाता है, तब क्या आर्थिक संकट गायब हो जाता है?
क्या यह संकट (HP Revised Pay Rules 2025) केवल आम जनता और कर्मचारियों के लिए आरक्षित है?
सुखविंदर सुक्खू को जब अपने करीबी नेताओं और राजनीतिक नियुक्तियों को खुश करना होता है, तब घाटे की चिंता क्यों नहीं होती?
और जब बात आम कर्मचारी और जनता की आती है, तभी क्यों अचानक “आर्थिक विवशता” का राग अलापा जाता है?
अगर यह दोहरा मापदंड (डबल स्टैंडर्ड) नहीं है, तो और क्या है?

HP Revised Pay Rules 2025: भरोसे से धोखे तक
- हिमाचल की राजनीति में कर्मचारी और पेंशनर वर्ग हमेशा से निर्णायक रहा है।
- कुल वोट बैंक में कर्मचारियों का प्रभाव लगभग 20–25% सीटों पर पड़ता है।
- इन्हीं कर्मचारियों के भरोसे में चुनाव जीतकर कांग्रेस सत्ता में आई।
- लेकिन सत्ता पाते ही सरकार ने सबसे पहले उन्हीं की जेब पर चोट कर दी।
- यह केवल आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक आत्मघात है।
विपक्ष का हमला: सरकार को घेरने का सुनहरा मौका
विपक्ष अब इस फैसले को “जनविरोधी और कर्मचारी विरोधी” साबित करने में जुट गया है।
कर्मचारियों के आंदोलन को विपक्ष खुले समर्थन का संकेत दे रहा है।
नैरेटिव यह बनाया जा रहा है कि “कांग्रेस ने वोट लेकर कर्मचारियों को धोखा दिया।”
यदि यह मुद्दा लंबा खिंच गया तो यह 2027 तक कांग्रेस का सबसे बड़ा चुनावी बोझ बन जाएगा।

सुक्खू सरकार की विफलताओं का काला चिट्ठा
आर्थिक कुप्रबंधन – कर्ज़ का बोझ लगातार बढ़ा, लेकिन राजस्व स्रोत बढ़ाने की योजना न बनी।
प्राथमिकताओं का संकट – नेताओं की सुविधाएँ बनी रहीं, कर्मचारियों पर बोझ डाला गया।
वादाख़िलाफी – चुनावी घोषणाओं में कर्मचारियों को सपने दिखाए, सत्ता में आते ही धोखा दिया।
दोहरा रवैया – अपने लिए वेतन और भत्तों की बढ़ोतरी में कोई हिचक नहीं, पर कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाया।
HP Revised Pay Rules 2025: जनता और कर्मचारियों के खिलाफ़ पाखंड

हिमाचल की सुक्खू सरकार ने यह साबित कर दिया है कि आर्थिक संकट केवल एक बहाना है।
असलियत यह है कि जब नेताओं और मंत्रियों को खुश करना होता है, तब कर्ज़ और घाटा कहीं गायब हो जाता है। लेकिन जब बात कर्मचारियों और आम जनता की आती है, तो यही सरकार “राजकोषीय विवशता” का नारा लगाने लगती है।
यानी यह निर्णय सिर्फ एक वित्तीय कदम नहीं, बल्कि कर्मचारियों के साथ विश्वासघात और सरकार के दोहरेपन की मिसाल है। और अगर यही सिलसिला जारी रहा तो यह फैसला कांग्रेस के लिए आने वाले चुनावों में राजनीतिक आत्मघात साबित होगा।
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