Himachal CPS Case: जब हिमाचल की राजनीति में सत्ता संतुलन साधने के प्रयास किए जा रहे थे, उसी समय जब प्रदेश की वादियों में न्याय का स्वर गूंजा, तो राज्य की राजनीति में हलचल मच गई। एक ओर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू अपने करीबी विधायकों और समर्थकों को संतुष्ट करने की मंशा से सीपीएस नियुक्तियों का मार्ग प्रशस्त कर रहे थे.
वहीं दूसरी ओर न्यायपालिका ने इस निर्णय को कानून के दायरे में परखने का निर्णय लिया। हिमाचल हाईकोर्ट ने CPS (मुख्य संसदीय सचिव) की नियुक्तियों को अवैध घोषित करते हुए सभी सुविधाओं को समाप्त करने का बड़ा फैसला सुनाया। इस निर्णय ने मुख्यमंत्री सुक्खू के राजनीतिक फैसलों और भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिया है।
Himachal CPS Case और हिमाचल हाईकोर्ट का फैसला: तथ्य और अधिनियम
हिमाचल प्रदेश में CPS का पद राज्य के मंत्रिमंडल के विस्तार की सीमाओं को दरकिनार करने के लिए बनाया गया था, ताकि मुख्यमंत्री अपने विधायकों को विशेष पद और सुविधाएं प्रदान कर सकें। मुख्यमंत्री सुक्खू ने इस कानून के तहत कई विधायकों को नियुक्त किया, ताकि वे सत्ता के निकट रह सकें और उन्हें सत्ता के लाभ मिलें। हालांकि, भारतीय संविधान के तहत राज्यों में केवल सीमित संख्या में मंत्रियों की नियुक्ति का प्रावधान है, और सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस प्रकार की नियुक्तियों को असंवैधानिक घोषित कर चुकी है।
हिमाचल हाईकोर्ट ने इस तथ्य को देखते हुए CPS अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर दिया और सभी सीपीएस पदों को समाप्त करने का आदेश दिया। इस निर्णय के तहत, अब उन विधायकों को सभी सरकारी सुविधाएं, कार्यालय और अन्य संसाधन छोड़ने होंगे, जिन्हें CPS के रूप में नियुक्त किया गया था।
CPS के रूप में नियुक्त व्यक्तियों को निम्नलिखित वेतन और सुविधाएं दी जा रही थीं
मासिक वेतन: CPS को लगभग 50,000 से 70,000 रुपये तक मासिक वेतन मिलता था, जो राज्य के अन्य उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारियों के बराबर है।
आवासीय सुविधा: CPS को सरकारी आवास उपलब्ध कराया जाता था, जिसके रखरखाव और सेवाओं का खर्च सरकार द्वारा वहन किया जाता था।
दफ्तर और सहायक कर्मचारी: CPS को एक निजी कार्यालय और सहायक कर्मचारियों की सुविधा दी जाती थी, जिसमें निजी सचिव, चपरासी और अन्य कर्मचारी शामिल होते थे।
यातायात और वाहन सुविधा: CPS को सरकारी वाहन और चालक सहित यात्रा सुविधा मिलती थी।
अन्य भत्ते: CPS को यात्रा भत्ता, दैनिक भत्ता, और चिकित्सा सुविधा जैसी सुविधाएं भी प्राप्त थीं।
मुख्यमंत्री सुक्खू के फैसले की मंशा और संभावित प्रभाव
इस निर्णय (Himachal CPS Case) को लेकर सवाल यह उठता है कि मुख्यमंत्री सुक्खू, जिन्हें अच्छी तरह से मालूम था कि CPS की नियुक्ति का कानूनी आधार कमजोर है, ने फिर भी क्यों इस जोखिम भरे कदम को उठाया? इसके पीछे उनकी मंशा अपनी पार्टी के उन विधायकों को संतुष्ट करना था जो चुनावी नतीजों के बाद उनके समर्थन में थे। इस कदम के जरिए सुक्खू ने अपनी राजनीतिक पकड़ को मजबूत करना चाहा और यह दर्शाया कि वे अपने समर्थकों के प्रति जिम्मेदार हैं।
Himachal CPS Case: राजनीति में संभावित भविष्य की दिशा
हिमाचल हाईकोर्ट का यह निर्णय मुख्यमंत्री सुक्खू की छवि और उनके राजनीतिक भविष्य पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। इस फैसले ने उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में चित्रित किया है जो अपने समर्थकों को संतुष्ट करने के लिए कानून को नजरअंदाज करने को तैयार हैं। इसके परिणामस्वरूप सुक्खू को न केवल जनता बल्कि उनकी पार्टी के भीतर भी आलोचना का सामना करना पड़ सकता है।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा गर्म है कि मुख्यमंत्री सुक्खू का यह कदम (Himachal CPS Case) एक जोखिम भरी राजनीतिक चाल थी, जिसका कानूनी और राजनीतिक दोनों ही परिणाम आए हैं। अब जब अदालत ने CPS अधिनियम को निरस्त कर दिया है, तो यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सुक्खू कैसे इस संकट का सामना करेंगे और उनके राजनीतिक भविष्य का क्या होगा। यह निर्णय हिमाचल की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है, जो सुक्खू के फैसलों की पारदर्शिता और उनकी प्रशासनिक क्षमता को लेकर गंभीर सवाल खड़ा करता है।