GST On Popcorn: किसी समय की बात है, एक राजा अपनी प्रजा की समस्याओं को समझने के लिए वेश बदलकर उनके बीच गया। उसने देखा कि लोग छोटे-छोटे खर्चों पर भी परेशान हैं। एक किसान ने कहा, “अब तो ऐसा लग रहा है कि हमारी हर सांस पर भी टैक्स लग जाएगा।” राजा को यह सुनकर चिंता हुई, लेकिन आज के दौर में शायद यही कहानी हकीकत बन चुकी है। पॉपकॉर्न, आइसक्रीम, और यहां तक कि सिनेमा हॉल में मिलने वाले खाने-पीने की चीजों पर जीएसटी बढ़ाकर, सरकार ने आम आदमी की जेब पर एक और वार कर दिया है।
पॉपकॉर्न और फूड आइटम्स पर GST का असर
हाल ही में जीएसटी काउंसिल ने फूड आइटम्स, विशेष रूप से तैयार और पैकेज्ड खाने-पीने की वस्तुओं पर टैक्स दरों में बदलाव किया।

- पॉपकॉर्न और रेडी-टू-ईट स्नैक्स: पहले 5% या 12% जीएसटी के दायरे में थे, अब इन्हें 18% स्लैब में डाल दिया गया है।
- आइसक्रीम और बेवरेज: इन पर पहले से ही 18% टैक्स लागू था, लेकिन अब इनके कच्चे माल पर भी टैक्स बढ़ा दिया गया है।
- सिनेमा हॉल में खाने-पीने की वस्तुएं: पहले 5% स्लैब में थीं, अब यह 12-18% के बीच हो गई हैं।
GST On Popcorn: सरकार का तर्क
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि यह कदम टैक्स कलेक्शन बढ़ाने और अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए उठाया गया है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में जीएसटी संग्रह 18 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले वर्ष से 11% अधिक है। सरकार का मानना है कि इससे राजस्व में वृद्धि होगी, जिससे कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में मदद मिलेगी।
GST On Popcorn: आम आदमी पर प्रभाव
- पहले से ही महंगाई दर नवंबर 2024 में 6.5% है।
- अब पॉपकॉर्न जैसी चीजें, जो आम जनता के लिए मनोरंजन का हिस्सा थीं, भी महंगी हो जाएंगी।
- सिनेमा हॉल में पहले से ही टिकट की कीमतें अधिक थीं, अब खाने-पीने की चीजें भी लोगों की पहुंच से बाहर हो सकती हैं।

मध्यम वर्ग पर बोझ
- रेडी-टू-ईट फूड्स, जो ऑफिस जाने वाले लोगों और छात्रों के लिए सुविधाजनक थे, अब महंगे हो गए हैं।
- मध्यम वर्ग, जो पहले से ही टैक्स और महंगाई की मार झेल रहा है, के लिए यह एक और झटका है।
छोटे व्यापारियों की समस्या
- छोटे और मध्यम स्तर के व्यवसाय, जो फूड और स्नैक इंडस्ट्री में काम करते हैं, अब इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का लाभ नहीं उठा पाएंगे।
- यह उनके मुनाफे को और कम करेगा।
GST का बड़ा परिप्रेक्ष्य
जीएसटी को 2017 में “एक देश, एक टैक्स” के नारे के साथ लागू किया गया था। लेकिन आज यह कई स्लैब्स और जटिलताओं के कारण व्यापारियों और उपभोक्ताओं के लिए सिरदर्द बन गया है।
वर्तमान स्लैब संरचना: 5%, 12%, 18%, और 28%
- पॉपकॉर्न जैसी वस्तुओं को 18% स्लैब में डालना यह दिखाता है कि सरकार हर छोटे खर्च पर भी टैक्स वसूलना चाहती है।
पॉपकॉर्न जैसी चीजों पर टैक्स बढ़ाकर सरकार ने यह संदेश दिया है कि वह हर छोटे खर्च पर भी राजस्व जुटाना चाहती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह विकास का संकेत है या आम आदमी की जेब पर एक और हमला? बढ़ती महंगाई और टैक्स का बोझ जनता की सहनशीलता की परीक्षा ले रहा है। ऐसे में सरकार को यह सोचना होगा कि ‘एक देश, एक टैक्स’ का सपना कहीं ‘एक टैक्स, एक बोझ’ में न बदल जाए।