Dev Deepawali of Varanasi: भारत का सबसे बड़ा त्योहार दीपावली बुराई पर अच्छाई और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। यह पर्व भगवान श्रीराम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है, जब लोगों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। लेकिन दीपावली का महत्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है। इसे नवीनता, समृद्धि और सामाजिक एकता का प्रतीक भी माना जाता है।
लेकिन दीपावली के बाद वाराणसी में एक और अद्भुत और भव्य उत्सव मनाया जाता है जिसे Dev Deepawali of Varanasi कहा जाता है। यह पर्व आध्यात्मिकता, आस्था और संस्कृति का अनूठा संगम है।
देव दीपावली देवताओं की दिवाली
वाराणसी, जिसे भारत की आध्यात्मिक राजधानी कहा जाता है, देव दीपावली के दौरान एक अद्वितीय प्रकाश-पर्व का अनुभव करती है। यह उत्सव कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो दिवाली के 15 दिन बाद आता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था, और देवताओं ने आनंद में दीप जलाए थे। इसी कारण इसे “देवताओं की दिवाली” कहा जाता है।
इस दिन गंगा के घाटों पर लाखों दीयों की रोशनी में वाराणसी का पूरा परिदृश्य जगमगा उठता है। यह नजारा श्रद्धालुओं, पर्यटकों और स्थानीय निवासियों को एक साथ आस्था और उत्सव के माहौल में बांध देता है।
देव दीपावली के प्रमुख अनुष्ठान और समारोह
देव दीपावली की शुरुआत दशाश्वमेध घाट और अन्य प्रमुख घाटों पर गंगा आरती से होती है। पुजारी पारंपरिक वस्त्रों में वेद मंत्रोच्चार, घंटियों और शंखध्वनि के बीच सामूहिक आरती करते हैं। यह अनुष्ठान न केवल गंगा नदी को समर्पित होता है, बल्कि देवताओं और पूर्वजों की पूजा भी की जाती है।
आरती के बाद घाटों पर लाखों दीयों को जलाया जाता है, जिससे गंगा का पानी दीपों की आभा से जगमगाने लगता है। लोग छोटी-छोटी नावों में बैठकर दीयों को गंगा में प्रवाहित करते हैं, जिससे यह दृश्य और भी मनोरम हो उठता है। इसके अलावा, सांस्कृतिक कार्यक्रमों जैसे शास्त्रीय संगीत, नृत्य प्रदर्शन और नाटकों का आयोजन भी होता है, जो पूरे वातावरण को जीवंत बना देता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा में स्नान का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन गंगा में डुबकी लगाने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। काशी विश्वनाथ मंदिर सहित शहर के सभी मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है, जहां लोग भगवान शिव की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
Dev Deepawali of Varanasi का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
देव दीपावली केवल एक पर्व नहीं है, बल्कि यह वाराणसी की आध्यात्मिक गहराई और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। घाटों पर जलते दीपक जहां शांति और विजय का संदेश देते हैं, वहीं गंगा में तैरते दीपक मानव आत्मा की प्रकाश की ओर यात्रा का प्रतीक माने जाते हैं।
इस अवसर पर लोग पिंडदान और पूर्वजों के लिए विशेष पूजा-अर्चना भी करते हैं, ताकि उनके आत्मिक शांति की प्राप्ति हो सके। साथ ही, यह पर्व हमें प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सम्मान का संदेश भी देता है, जिसमें गंगा आरती के माध्यम से नदी की स्वच्छता और संरक्षण की प्रार्थना की जाती है।
Dev Deepawali of Varanasi: दीपावली से कैसे अलग है?
जहां दीपावली मुख्य रूप से घर-परिवार के बीच मनाई जाती है और व्यक्तिगत खुशियों का प्रतीक है, वहीं Dev Deepawali of Varanasi का जोर सामूहिक पूजा और सामाजिक सहभागिता पर होता है। यह पर्व वाराणसी के सार्वजनिक घाटों पर मनाया जाता है और पर्यावरण से जुड़ी आस्था को भी प्रकट करता है।
दीपावली के दौरान जहां पटाखों और रंगोली का प्रचलन होता है, वहीं देव दीपावली में प्राकृतिक साधनों का उपयोग किया जाता है, जैसे मिट्टी के दीए और ताजे फूल। यह उत्सव वाराणसी के पर्यटन के लिए भी एक महत्वपूर्ण अवसर है, जहां हजारों पर्यटक इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए आते हैं।
देव दीपावली न केवल एक रोशनी का पर्व है, बल्कि यह आध्यात्मिकता, आस्था और सामूहिक एकता का जीवंत उदाहरण है। वाराणसी के घाटों पर जलते हुए दीयों की छटा और गंगा आरती का वातावरण हर किसी को आध्यात्मिक शांति और आंतरिक आनंद से भर देता है।
जो लोग इस अवसर पर वाराणसी आते हैं, वे केवल एक त्योहार का हिस्सा नहीं बनते, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को भी करीब से अनुभव करते हैं। देव दीपावली हमें यह संदेश देती है कि जैसे *प्रकाश अंधकार को मिटा देता है, वैसे ही *आस्था और एकता से जीवन की हर चुनौती का समाधान पाया जा सकता है।