BJP double standards: एक दौरे पर शोर, दूसरे पर खामोशी?

दोहरा चेहरा या सियासी चालबाज़ी?

BJP double standards: हिमाचल की राजनीति में इन दिनों एक अजीब-सा दोहरापन देखने को मिल रहा है। स्वास्थ्य मंत्री धनीराम शांडिल के विदेशी दौरे पर जिस तरह भाजपा ने आसमान सिर पर उठा लिया, उसी भाजपा के नेताओं की ज़ुबान अब उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान के जापान दौरे पर सिल गई है। सवाल उठना लाजिमी है कि क्या भाजपा के लिए “विदेश दौरे” का मतलब केवल कांग्रेस के भीतर टारगेट चुनकर शोर मचाना है, या फिर यह पूरा खेल भीतरखाने की कोई राजनीतिक चाल है?

BJP double standards: भाजपा की सुविधा अनुसार नैतिकता

बीते दिनों जब स्वास्थ्य मंत्री धनीराम शांडिल का विदेशी दौरे का पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो भाजपा ने इसे नैतिकता का मुद्दा बना दिया। पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने टिप्पणी की, कार्यकर्ताओं ने शोर मचाया, और दबाव इतना बढ़ा कि शांडिल को अपना दौरा अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करना पड़ा।
लेकिन जैसे ही उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान पूरे लाव-लश्कर के साथ जापान रवाना हो गए, भाजपा अचानक चुप्पी साध गई। यही नहीं, कांग्रेस के भीतर भी एक अजीब-सी खामोशी है। आखिर सवाल यह है कि जब स्वास्थ्य मंत्री के मामले में नैतिकता की दुहाई दी जा रही थी, तो उद्योग मंत्री के जापान दौरे पर क्यों सबकी बोलती बंद हो गई?

कांग्रेस के भीतर की चालबाज़ी?

सोशल मीडिया पर वायरल हुए स्वास्थ्य मंत्री शांडिल के दौरे के दस्तावेज़ ने एक और परत खोल दी। तो क्या यह पूरा खेल कांग्रेस के भीतर की अंदरूनी राजनीति का हिस्सा था? क्या शांडिल की ईमानदार छवि और जनता में उनकी पकड़ से पार्टी के ही कुछ लोग असहज हैं? आखिर बिना “उच्च स्तर” के इशारे पर विभागीय दस्तावेज़ सोशल मीडिया पर कैसे वायरल हो सकते हैं?

BJP double standards: भाजपा की चुप्पी का रहस्य

अब सवाल भाजपा से भी है। अगर विदेशी दौरा ही असली मुद्दा है, तो उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान के जापान दौरे पर क्यों खामोशी? क्यों कांग्रेस नेताओं की तरह भाजपा नेता भी इस पर उंगली उठाने से कतरा रहे हैं? क्या यह सुविधा अनुसार राजनीति नहीं है?
क्या भाजपा केवल उन्हीं मुद्दों पर शोर मचाती है, जहाँ उसे राजनीतिक लाभ दिखता है? और जहाँ उसके अपने संबंध या समीकरण प्रभावित होते हैं, वहाँ खामोश हो जाती है?

असली मुद्दा जनता या सियासत?

सच्चाई यह है कि इन विदेशी दौरों से जनता को कोई ठोस लाभ मिला है या नहीं, इसका जवाब अब तक किसी ने नहीं दिया। स्वास्थ्य मंत्री शांडिल के मामले में तो यह दौरा रद्द ही हो गया, लेकिन उद्योग मंत्री का जापान दौरा किस हित में है, इस पर किसी ने कोई सफाई नहीं दी। न भाजपा, न कांग्रेस।
नतीजा

यह पूरा प्रकरण हिमाचल की राजनीति का दोहरा चेहरा उजागर करता है। भाजपा हो या कांग्रेस – दोनों पार्टियाँ सुविधा अनुसार नैतिकता का ढोल पीटती हैं और जब मामला अपने या “अपनों” का होता है तो चुप्पी साध लेती हैं।
धनीराम शांडिल जैसे नेताओं की ईमानदार छवि को जिस तरह निशाना बनाया गया, उससे यह साफ होता है कि राजनीति में अब नीतियाँ नहीं, बल्कि चालबाज़ियाँ हावी हैं। सवाल यह है कि क्या यह सब जनता के भरोसे का खिलवाड़ नहीं है? और क्या हिमाचल की राजनीति अब केवल “दौरों” और “दोहरापन” की राजनीति तक सीमित होकर रह गई है?

यह लेख सीधा सवाल उठाता है – क्या भाजपा और कांग्रेस दोनों ही जनता को गुमराह कर रहे हैं, और क्या धनीराम शांडिल के खिलाफ चली सियासी चाल वास्तव में कांग्रेस की आंतरिक राजनीति का हिस्सा थी?

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