Bhunda Mahayagya: आस्था, परंपरा और सामूहिक समर्पण का महोत्सव

हिमालय की गोद में बसे हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में जब “भुंड” की गूंज सुनाई देती है, तो यह केवल एक परंपरा का प्रतीक नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और समुदाय के अद्वितीय संगम का परिचायक बन जाती है। भुंडा महायज्ञ (Bhunda Mahayagya), जिसे स्थानीय भाषा में “भुंडा” भी कहा जाता है, न केवल हिमाचल प्रदेश की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, बल्कि यह धार्मिक, सामाजिक और ऐतिहासिक महत्व भी रखता है। 2025 में यह महायज्ञ एक बार फिर चर्चा में है, खासकर स्पैल घाटी के रोहड़ू क्षेत्र में 1885 के बाद आयोजित हुए भुंडा महायज्ञ होने के कारण।

Bhunda Mahayagya: क्या है यह आयोजन?

भुंडा महायज्ञ हिमाचल प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में हर 12 से 15 साल में आयोजित होने वाला एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान है। यह महायज्ञ भगवान नाग देवता की पूजा और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

Bhunda Mahayagya (File Photo)

भुंडा महायज्ञ के प्रमुख पहलू

धार्मिक महत्व: यह आयोजन भगवान नाग देवता को समर्पित है, जिन्हें क्षेत्र का रक्षक देवता माना जाता है। भुंडा महायज्ञ के दौरान “भुंड” (एक रस्सी पर चलने का अनुष्ठान) किया जाता है, जिसे साहस और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

सामाजिक महत्व: यह आयोजन क्षेत्र के विभिन्न गांवों और समुदायों को एकजुट करता है। महायज्ञ के दौरान सामूहिक भोज, नृत्य, और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भुंडा महायज्ञ की परंपरा हजारों साल पुरानी है। यह आयोजन बुराई पर अच्छाई की जीत और प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए नाग देवता की कृपा प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाता है।

Bhunda Mahayagya (File Photo)

Bhunda Mahayagya का इतिहास और जैली व्यक्ति की भूमिका

Bhunda Mahayagya का इतिहास हिमाचल प्रदेश की प्राचीन नाग संस्कृति और धार्मिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है। यह आयोजन हिमालयी क्षेत्र के नाग देवता की पूजा और उनके आशीर्वाद के लिए किया जाता है। इसके केंद्र में है “भुंड” का अनुष्ठान, जो साहस, समर्पण और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।

भुंड की रस्म और जैली व्यक्ति की भूमिका

भुंडा महायज्ञ में “भुंड” रस्म सबसे महत्वपूर्ण होती है। इस रस्म के दौरान एक विशेष व्यक्ति, जिसे “जैली” कहा जाता है, रस्सी पर चलकर नाग देवता को प्रसन्न करने का कार्य करता है।

Bhunda Mahayagya में जैली व्यक्ति का चयन

Bhunda Mahayagya (File Photo)
  • जैली व्यक्ति का चयन पूरे क्षेत्र में विशेष धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से किया जाता है।
  • यह व्यक्ति साहसी, शारीरिक रूप से सक्षम और मानसिक रूप से मजबूत होता है।
  • माना जाता है कि जैली व्यक्ति नाग देवता का प्रतिनिधि होता है और उसकी भूमिका देवता की कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।

दिव्य रस्सी (देवता की रस्सी)

  • भुंड अनुष्ठान के लिए एक विशेष रस्सी तैयार की जाती है, जिसे “दिव्य रस्सी” कहा जाता है।
  • इस रस्सी को नाग देवता के मंदिर में विशेष अनुष्ठानों के बाद पवित्र किया जाता है।
  • यह रस्सी पर्वतों के बीच खींची जाती है, और जैली व्यक्ति इस पर चलकर नाग देवता को अपनी भक्ति और साहस का प्रदर्शन करता है।

जैली का बलिदान और पुनर्जन्म का प्रतीक

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, जैली व्यक्ति रस्सी पर चलने के दौरान अपने जीवन को नाग देवता को समर्पित करता है। इस रस्म को बलिदान और पुनर्जन्म का प्रतीक माना जाता है, जो क्षेत्र की धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं में गहराई से जुड़ा है।

भुंडा महायज्ञ और जैली की विरासत

Bhunda Mahayagya में जैली व्यक्ति की भूमिका केवल एक रस्म नहीं, बल्कि साहस, समर्पण और सामुदायिक भावना का प्रतीक है। यह अनुष्ठान हिमाचल प्रदेश की नाग संस्कृति और धार्मिक परंपराओं को जीवित रखने का माध्यम है।

दिव्य रस्सी का महत्व

दिव्य रस्सी केवल एक उपकरण नहीं, बल्कि इसे नाग देवता का आशीर्वाद माना जाता है। रस्सी की पवित्रता और शक्ति आयोजन की सफलता का केंद्र होती है। यह रस्सी जैली व्यक्ति और नाग देवता के बीच आध्यात्मिक पुल का काम करती है।

“भुंड” और “जैली” की यह परंपरा न केवल हिमाचल की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करती है, बल्कि यह हमें साहस, आस्था और सामुदायिक एकता का गहरा संदेश भी देती है।

भुंडा महायज्ञ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर है। यह आयोजन न केवल आस्था और परंपरा का प्रतीक है, बल्कि यह समाज और पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी दर्शाता है। “भुंड की गूंज केवल पर्वतों तक सीमित नहीं, बल्कि यह हमारी परंपरा, संस्कृति और सामूहिक भावना की आवाज है। यह आयोजन हमें यह सिखाता है कि आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन कैसे बनाए रखा जाए।

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