AAP loss: दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी (AAP) का उदय एक आंदोलन की तरह हुआ था। अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन से निकली यह पार्टी पारंपरिक राजनीति के विरुद्ध एक नई उम्मीद बनकर उभरी। जनता को मुफ्त बिजली, बेहतरीन शिक्षा, मोहल्ला क्लीनिक, पानी और महिलाओं की सुरक्षा जैसी योजनाओं से AAP ने खुद को “काम की राजनीति” का प्रतीक बना लिया।
लेकिन 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में जो नतीजे सामने आए, उन्होंने AAP के राजनीतिक वजूद पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया। इतने बड़े काम करने के बावजूद पार्टी को हार का सामना क्यों करना पड़ा? क्या यह हार केवल चुनावी गणित का हिस्सा थी, या इसके पीछे गहरे राजनीतिक, रणनीतिक और प्रशासनिक कारण थे?
आइए, विस्तार से समझते हैं कि कैसे AAP अपनी ही बनाई राजनीतिक नींव पर लड़खड़ा गई और इस हार के क्या व्यापक राजनीतिक प्रभाव होंगे।
AAP loss: हार के प्रमुख कारण
- भ्रष्टाचार के आरोप और ‘ईमानदार राजनीति’ की छवि को झटका
AAP की सबसे बड़ी पूंजी उसकी “ईमानदार राजनीति” की छवि थी। लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली शराब नीति घोटाले में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने इस छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया।
- CBI-ED की जांच और गिरफ्तारी: जब अरविंद केजरीवाल को ED ने गिरफ्तार किया, तब AAP ने इसे ‘तानाशाही’ और ‘लोकतंत्र पर हमला’ बताया। लेकिन जनता के एक वर्ग को लगा कि यदि कोई दोषी नहीं है, तो वह जांच से क्यों बच रहा है?
- मनीष सिसोदिया की गैरमौजूदगी का असर: सिसोदिया को AAP की शिक्षा क्रांति का चेहरा माना जाता था। उनकी गैरमौजूदगी ने न केवल प्रशासनिक कमजोरी दिखाई, बल्कि जनता के मन में यह सवाल भी उठा कि AAP के नेता अब उसी राजनीति में उलझ चुके हैं, जिसका वे कभी विरोध करते थे।
- केंद्र बनाम दिल्ली सरकार का टकराव: ‘विक्टिम कार्ड’ हुआ फेल?
AAP हमेशा केंद्र सरकार और उपराज्यपाल (LG) के हस्तक्षेप को अपनी प्रशासनिक बाधाओं के रूप में पेश करती रही। लेकिन इस बार जनता को यह नैरेटिव उतना प्रभावी नहीं लगा।

- MCD और LG के साथ टकराव: नगर निगम में बहुमत हासिल करने के बावजूद AAP उसे ठीक से संचालित नहीं कर पाई। कचरा प्रबंधन, अवैध निर्माण, और स्थानीय प्रशासन पर कोई प्रभावी बदलाव न दिखने से जनता को निराशा हुई।
- बिजली सब्सिडी पर संकट: LG ने AAP की बिजली सब्सिडी योजनाओं पर सवाल उठाए, जिससे जनता में यह संदेश गया कि सरकार की योजनाएं दीर्घकालिक रूप से वित्तीय रूप से अस्थिर हैं।
- हिंदुत्व की राजनीति और AAP का ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ दांव
2024 के लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सभी सीटें बीजेपी के खाते में गईं। इसका कारण सिर्फ मोदी लहर नहीं था, बल्कि हिंदुत्व की राजनीति का गहरा असर भी था।
- केजरीवाल की ‘हनुमान भक्ति’ उल्टी पड़ी? चुनाव के दौरान केजरीवाल ने खुद को हनुमान भक्त के रूप में प्रोजेक्ट करने की कोशिश की, लेकिन इससे न तो हिंदू वोट बैंक मिला, और न ही अल्पसंख्यक वोट बचा सके।
- सीएए-एनआरसी और अल्पसंख्यक मतदाता: मुस्लिम समुदाय, जो 2015 और 2020 में AAP के पक्ष में था, इस बार बंटा हुआ दिखा। कुछ वर्ग कांग्रेस की ओर झुके, तो कुछ ने मतदान से परहेज किया।
- मुफ्त योजनाओं की राजनीति: जनता का बदला हुआ मूड
AAP की सबसे बड़ी USP उसकी मुफ्त योजनाओं की राजनीति रही है। लेकिन इस बार यह फॉर्मूला पूरी तरह काम नहीं आया।
- वित्तीय दबाव और अस्थिरता: दिल्ली सरकार की आर्थिक स्थिति लगातार बिगड़ रही थी। सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता गया, जिससे जनता में यह धारणा बनी कि यह मॉडल लंबे समय तक टिकाऊ नहीं है।
- मिडिल क्लास का बढ़ता असंतोष: दिल्ली का मिडिल क्लास तबका, जिसे शुरुआत में AAP का सबसे बड़ा समर्थक माना जाता था, अब इसे सिर्फ ‘फ्रीबीज’ (रियायतें) देने वाली पार्टी के रूप में देखने लगा।

- कांग्रेस की वापसी और विपक्षी वोटों में सेंध
AAP को एक और बड़ा झटका कांग्रेस से मिला।
- इंडिया गठबंधन का भ्रम: AAP और कांग्रेस के बीच मतभेदों के चलते गठबंधन नहीं हो पाया, जिससे बीजेपी को सीधा फायदा हुआ।
- कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक: दिल्ली की कई सीटों पर कांग्रेस ने मुस्लिम और दलित वोट बैंक में सेंध लगाई, जिससे AAP कमजोर पड़ गई।
- बीजेपी की रणनीति: AAP के किले में सेंध
- मोदी फैक्टर और चुनावी मशीनरी
बीजेपी ने चुनाव को लोकल नहीं, बल्कि “मोदी बनाम केजरीवाल” बना दिया।
- बूथ मैनेजमेंट और सोशल मीडिया का खेल: बीजेपी ने बूथ लेवल पर माइक्रो-मैनेजमेंट किया, जबकि AAP सोशल मीडिया पर केंद्रित रही, जो जमीनी स्तर पर प्रभावी नहीं रहा।
- ओबीसी और पूर्वांचली वोट बैंक पर कब्जा: दिल्ली के पूर्वांचली वोट बैंक पर बीजेपी ने मजबूत पकड़ बना ली, जिससे AAP कमजोर पड़ गई। AAP की हार के दीर्घकालिक राजनीतिक प्रभाव
- राष्ट्रीय विस्तार पर बड़ा झटका
AAP ने पंजाब में सरकार बनाई और अन्य राज्यों में विस्तार की कोशिश की, लेकिन दिल्ली की हार से पार्टी की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को बड़ा झटका लगा। - नेतृत्व संकट: केजरीवाल के बाद कौन?
AAP की सबसे बड़ी समस्या यह है कि पूरी पार्टी केजरीवाल-केंद्रित है।
- मनीष सिसोदिया और संजय सिंह की गैरमौजूदगी ने नेतृत्व का संकट और गहरा दिया।
- क्या नया चेहरा उभरेगा? AAP के पास कोई ऐसा दूसरा नेता नहीं दिखता, जो पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर आगे ले जा सके।
- विपक्षी गठबंधन में AAP की स्थिति कमजोर
- अब विपक्षी गठबंधन (INDIA) में भी AAP की स्थिति कमजोर हो सकती है। कांग्रेस पहले से ही AAP के साथ असहज थी, और इस हार के बाद उसे और कमजोर माना जाएगा। क्या AAP वापसी कर सकती है?
- AAP loss कई कारकों का नतीजा रही—नेतृत्व संकट, भ्रष्टाचार के आरोप, बीजेपी की आक्रामक रणनीति, हिंदुत्व की राजनीति और मुफ्त योजनाओं की थकान।
AAP loss: यदि वापसी करनी है, तो अपनानी होगी नई रणनीति
- पार्टी को सिर्फ मुफ्त योजनाओं पर निर्भर रहने के बजाय संगठन मजबूत करना होगा।
- नई नेतृत्व क्षमता विकसित करनी होगी, जो सिर्फ केजरीवाल-केंद्रित न हो।
- बीजेपी की हिंदुत्व और राष्ट्रवादी राजनीति के मुकाबले नए नैरेटिव गढ़ने होंगे।
अगर AAP इन बिंदुओं पर काम नहीं करती, तो आने वाले वर्षों में उसकी राजनीतिक प्रासंगिकता लगातार कमजोर होती चली जाएगी।