Bihar Election 2025: एक सूची, कई सवाल…
जिसने कुछ महीने पहले लोकतंत्र की ताकत दिखाई थी,
अब उसी के अस्तित्व पर उठने लगे हैं सवाल…
बिहार की राजनीति एक बार फिर गर्म है—वजह है वोटर लिस्ट।
चुनावी मौसम है, पर ये मौसम इस बार सिर्फ प्रचार और वादों का नहीं, बल्कि आरोपों और आशंकाओं का भी है।
वही मतदाता जो कुछ महीने पहले लोकसभा चुनाव में बढ़-चढ़कर मतदान कर रहे थे,
अब उसी सूची को लेकर हंगामा है—“फर्जी वोटर”, “डुप्लिकेट नाम”, “रद्दीकरण” और “जांच की मांग”।
तो सवाल ये उठता है—जब वोटर लिस्ट ठीक थी लोकसभा चुनाव के समय, तो अब अचानक(Bihar Election 2025) विधानसभा से पहले गड़बड़ी कहां से आ गई?
क्या यह प्रशासनिक संयोग है या कोई सियासी प्रयोग?
Bihar Election 2025: मुद्दा क्या है?
बिहार में कई जिलों से शिकायतें सामने आई हैं कि विधानसभा क्षेत्रों में बड़ी संख्या में वोटरों के नाम या तो हटाए जा रहे हैं या दोहराए जा रहे हैं।
राजनीतिक दलों ने आरोप लगाया है कि:
- सत्ताधारी गठबंधन के प्रभाव वाले इलाकों में विरोधी वोटरों के नाम गायब हो रहे हैं
- कुछ क्षेत्रों में एक ही व्यक्ति का नाम दो-दो बार दर्ज है, जिससे फर्जी मतदान की आशंका जताई जा रही है
- कई मतदाताओं ने शिकायत की कि उन्हें बिना सूचना के सूची से हटा दिया गया
राजनीतिक कोण: क्यों हो रही है वोटर लिस्ट की ‘सफाई’?

- ‘गठबंधन सरकार की नाजुक नींव’:
बिहार में इस समय एक गठबंधन सरकार है, जिसमें लगातार आंतरिक दरारें और अस्थिरता के संकेत मिलते रहे हैं।
ऐसे में विपक्ष का मानना है कि मौजूदा सरकार हर उस संभावना को खत्म करना चाहती है, जो उसके खिलाफ मतदान का कारण बने।
- ‘लोकसभा चुनाव बनाम विधानसभा समीकरण’:
लोकसभा चुनावों में बिहार में एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिला, लेकिन विधानसभा के समीकरण बिल्कुल अलग होते हैं।
यहां जातीय आधार, स्थानीय समीकरण और व्यक्तिगत छवि ज्यादा असर डालते हैं।
ऐसे में अगर वोटर लिस्ट से कुछ खास वर्गों के नाम हटते हैं, तो सीट का पूरा गणित पलट सकता है।
- ‘EVM नहीं, अब मतदाता सूची है नया युद्धक्षेत्र’:
2019 और 2024 के बाद जहां विपक्ष EVM पर सवाल उठाता रहा, वहीं अब उन्होंने मतदाता सूची को ही निशाना बना लिया है।
यह एक नई रणनीति है—”अगर हारें, तो आधार वोट ही गायब था।”
Bihar Election 2025: चंडीगढ़ मेयर चुनाव बना अविश्वास की जड़
चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर जो सबसे बड़ा धक्का हाल के वर्षों में लगा, वह था चंडीगढ़ मेयर चुनाव।
इसमें कैमरे के सामने स्पष्ट रूप से वोट की चोरी होते हुए देखी गई।
मतपेटी से मत निकालकर दोबारा मोड़ना और विपक्षी दलों के मतों को जानबूझकर अमान्य घोषित करना,
ने न सिर्फ चुनाव प्रक्रिया की गरिमा को ठेस पहुंचाई**, बल्कि आम मतदाता में यह संदेश गया कि “अगर वोट की चोरी खुलेआम हो सकती है, तो फिर लोकतंत्र कितना सुरक्षित है?”
दिल्ली विधानसभा में हजारों नामों की कटौती भी बनी चिंता का कारण
कुछ महीने पहले दिल्ली में हुए विधानसभा उपचुनावों में, हजारों वोटरों के नाम अचानक लिस्ट से कटने की खबरें सामने आई थीं।
बहुत से लोग वोट डालने गए और पता चला कि उनका नाम मौजूद ही नहीं है।
यह मामला इसलिए भी गंभीर है क्योंकि राजधानी जैसे इलाके में, जहां डिजिटल निगरानी और चुनाव आयोग की सीधी नज़र होती है, वहां इस तरह की गड़बड़ी का सामने आना चुनाव आयोग की क्षमता और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
चुनाव आयुक्त की चयन प्रक्रिया में बदलाव: सरकार की नीयत पर सवाल

Bihar Election 2025:वोटर लिस्ट की गड़बड़ियों के बीच एक और बड़ा मुद्दा है—चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में सरकार द्वारा किया गया बदलाव। पहले जहां चुनाव आयुक्तों का चयन प्रधान न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और नेता विपक्ष की समिति द्वारा किया जाता था,
अब सरकार ने कानून बदलकर इस प्रक्रिया को अपने नियंत्रण में ले लिया है। नया अधिनियम बताता है कि चीफ इलेक्शन कमिश्नर की नियुक्ति के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी होगी। पीएम, विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त एक केंद्रीय मंत्री की तीन सदस्यीय कमेटी चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की सिफारिश करेगी।
Bihar Election 2025:चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया क्या है?
चुनाव आयोग का कहना है कि यह नियमित पुनरीक्षण की प्रक्रिया है, जिसमें:
मृतकों के नाम हटाए जाते हैं
स्थानांतरित लोगों के नाम अपडेट किए जाते हैं
डुप्लिकेट एंट्री को हटाया जाता है
हालांकि, आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि अगर कोई मतदाता अपने नाम के हटने को लेकर शिकायत करता है, तो उसे फॉर्म 6 भरकर नाम फिर से जुड़वाने की सुविधा दी जाती है।
वोटर की भूमिका: अब सिर्फ नाम नहीं, चेतना भी ज़रूरी है
इस पूरे विवाद में सबसे जरूरी बात यह है कि आम वोटर को भी अब सतर्क रहना होगा।
क्योंकि अगर आपका नाम लिस्ट से गायब है और आप मतदान से वंचित हो जाते हैं,
तो नुकसान सिर्फ एक मत का नहीं होगा—बल्कि लोकतंत्र की आत्मा को चोट लगेगी।
चुनाव से पहले राजनीति की पहली लड़ाई – वोटर लिस्ट
बिहार की राजनीति में अब वोटर लिस्ट ही नई रणभूमि बन गई है।
जहां एक ओर लोकतंत्र को मजबूत करने की बात होती है, वहीं दूसरी ओर उसी लोकतंत्र की बुनियाद—मतदाता—की गिनती पर विवाद हो रहा है।
- क्या यह सिर्फ एक तकनीकी मामला है या सच में वोटों की चोरी की तैयारी है?
- क्या चुनाव आयोग निष्पक्ष बना रहेगा या सत्ता के दबाव में आएगा?
- और सबसे अहम—क्या आम मतदाता जागरूक होकर इस सूची में अपना नाम बचा पाएगा?
ये सवाल अब सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं हैं,
ये अब बिहार और देश की राजनीति का भविष्य तय करेंगे।