Free Electricity in Himachal: राजनीति और चुनावों में जनता से बड़े-बड़े वादे करना आम हो गया है, लेकिन सवाल तब उठते हैं जब ये वादे हकीकत में पूरे नहीं होते। चुनावों के दौरान सत्ता हासिल करने के मोह में राजीनतिक दल ऐसे-ऐसे बड़े वादे करते है कि मानो अगले पांच वर्षों में प्रदेश की कायापलट हो जाएगी। चुनावी बेला में किये जा रहे वादों को लेकर जब नेताओं से इन वादों को कैसे पूरा किया जायेगा का सवाल पूछा जाता है, तो नेताओं का सदियों से चला आ रहा जवाब सुनने को मिलता है हमने इसके सभी इंतज़ाम कर लिया है।
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार द्वारा चुनाव से पूर्व हर घर को 300 यूनिट मुफ्त बिजली का वादा भी ऐसा ही एक वादा साबित होता दिख रहा है, जिसे अब नए तर्कों के आधार पर सीमित करने की तैयारी की जा रही है। कई आलोचक इसे चुनावी धोखा या सत्ता हासिल करने के लिए जनता को भ्रमित करने का जुमला मान रहे हैं कि कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिए जो वादा किया था, उसका असली मकसद जनता को बहलाकर वोट हासिल करना था, न कि वास्तव में उसे लागू करना। अब जब सरकार सत्ता में है, वह वादों से पीछे हटकर वित्तीय संकट का तर्क दे रही है
टैक्स भरने वाले राहत से वंचित
इस नीति का सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव मध्यम वर्ग पर पड़ता है, जो सरकार के हर टैक्स का बोझ तो उठाता है लेकिन जब बात आय बढ़ने और योजनाओं तथा सब्सिडी की लाभ उठाने की हो तो लगातार वंचित रहता है। हिमाचल के ज्यादातर मध्यमवर्गीय परिवारों की वार्षिक आय 6 से 12 लाख रुपये के बीच है, और यह वर्ग पहले से ही महंगाई, शिक्षा और स्वास्थ्य खर्चों से जूझ रहा है।
जब सरकार बिजली सब्सिडी जैसी योजनाओं में कटौती करती है, तो यह सीधे तौर पर इन परिवारों के बजट पर असर डालती है। इस वर्ग का कहना है कि अगर हर प्रकार का आयकर और जीएसटी भरने के बावजूद उन्हें कोई राहत नहीं दी जाएगी तो सरकार की योजनाओं से उनका भरोसा टूटेगा। यह सवाल भी उठता है कि करदाता वर्ग के साथ इस तरह का व्यवहार करना क्या न्यायोचित है?
वित्तीय संकट का तर्क और कांग्रेस का चुनावी घोषणापत्र
Free Electricity in Himachal: सरकार ने बिजली सब्सिडी को आय वर्ग से जोड़ने का तर्क यह दिया है कि हिमाचल प्रदेश की वित्तीय स्थिति गंभीर है और राज्य पर 75,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है जिसमे कोई संदेह नहीं है। लेकिन यहां सबसे अहम सवाल यह है अगर राज्य की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी, तो कांग्रेस ने चुनावों से पहले मुफ्त बिजली का वादा क्यों किया? क्या सरकार को तब वित्तीय संकट का अंदाजा नहीं था?
अगर 125 यूनिट मुफ्त बिजली राज्य के वित्तीय हित में नहीं था, तो चुनावी घोषणापत्र में 300 यूनिट मुफ्त बिजली शामिल करना जनता को भ्रमित करने और सत्ता में आने का एक चुनावी जुमला माना जा सकता है। वादा किया गया और अब धीरे-धीरे उससे पीछे हटने की कवायद शुरू हो चुकी है। क्या यह सरकार की गंभीरता और जिम्मेदारी पर सवाल खड़े नहीं करता?
Free Electricity In Himachal: पर गरमाई राजनीति
इस मुद्दे को लेकर राज्य में राजनीतिक माहौल गरमा गया है। भाजपा ने इस मुद्दे को हाथोंहाथ लिया है और कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि उसका चुनावी घोषणापत्र महज एक धोखा था न केवल फ्री बिजली बल्कि कांग्रेस घोषणा पत्र में किये गये किसी भी वादे को पूरा नहीं करेगी, भाजपा नेता सवाल उठा रहे हैं कि अगर यह योजना आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं थी, तो इसे घोषणापत्र में शामिल करना ही गलत था।
दूसरी ओर जनता और कई मध्यमवर्गीय परिवार अब कह रहे हैं कि वे कांग्रेस के वादों पर भरोसा करके ठगे गए हैं। जिसका परिणाम कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनावों में भी झेलना पड़ा
क्या सिर्फ सब्सिडी बंद करना समाधान है?
विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए सिर्फ सब्सिडी बंद करना समाधान नहीं हो सकता। सरकार को *व्यवस्थित कर सुधार, अनुत्पादक खर्चों में कटौती, और आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देने जैसे कदम भी उठाने होंगे।
अगर सब्सिडी में कटौती से मिलने वाला राजस्व राज्य की आर्थिक स्थिति को सुधारने में नाकाफी है, तो इस कदम का राजनीतिक और सामाजिक नुकसान कहीं अधिक हो सकता है। इससे जनता का सरकार की नीयत और विश्वसनीयता पर से भरोसा उठ सकता है। अगर मुफ्त बिजली योजना राज्य के हित में नहीं थी, तो इसे चुनावी घोषणापत्र में शामिल करना ही गलत था। अब जब सरकार ने वादे से पीछे हटना शुरू कर दिया है, तो जनता इसे चुनावी स्टंट के रूप में देख रही है। यह मुद्दा न केवल आगामी चुनावों में कांग्रेस के लिए राजनीतिक संकट पैदा कर सकता है, बल्कि मध्यम वर्ग में बढ़ती नाराजगी भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।
हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार के 300 यूनिट मुफ्त बिजली के वादे का हश्र अब सभी के सामने है। यह मामला केवल एक योजना का नहीं, बल्कि राजनीतिक नैतिकता का भी है। यदि कांग्रेस अपनी नीतियों को सही ठहराने में असफल होती है, तो यह न केवल उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता को प्रभावित करेगा, बल्कि हिमाचल प्रदेश की राजनीति में एक नई दिशा भी तय कर सकता है। Free Electricity in Himachal
राजनीतिक दलों को यह समझने की आवश्यकता है कि सिर्फ बड़े वादे करने से चुनाव नहीं जीते जाते, बल्कि उन वादों को ईमानदारी से पूरा करना ही सच्ची राजनीतिक जीत है।