India-Canada issue:

India-Canada issue: कनाडा विवाद ने खोली भारत की विदेश नीति की पोल

India-Canada issue: मोदी सरकार ने पिछले एक दशक में अपनी विदेश नीति को लेकर एक आक्रामक और मजबूत छवि बनाई है। सरकार के प्रचार में इसे एक ऐसी नीति के रूप में प्रस्तुत किया गया, जिसने भारत को वैश्विक महाशक्ति के रूप में स्थापित किया और पश्चिमी देशों के साथ गहरे संबंधों को मजबूत किया। लेकिन कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत पर खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाने के बाद यह छवि टूटती नजर आती है।

यह विवाद केवल कूटनीतिक संबंधों में खटास का मामला नहीं है, बल्कि इसने मोदी सरकार की विदेश नीति की खामियों और सीमाओं को उजागर कर दिया है। आक्रामक कूटनीति और शक्ति प्रदर्शन के बावजूद सरकार की राजनयिक लचीलापन और संवाद क्षमता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। समझते हैं कि कैसे यह विवाद मोदी सरकार की तथाकथित मजबूत विदेश नीति के खोखलेपन को दर्शाता है और भारत के लिए इसके क्या नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं।

India-Canada issue: कारण और मौजूदा राजनीतिक स्थिति

  • खालिस्तान मुद्दा और राजनैतिक पृष्ठभूमि कनाडा में खालिस्तान समर्थक आंदोलन दशकों से सक्रिय रहा है, और वहां की सरकार इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत देखती है। दूसरी ओर, भारत इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानता है। इस तनाव के केंद्र में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का मामला है, जिसे भारत ने एक आतंकी के रूप में सूचीबद्ध किया था। कनाडा ने जब इस हत्या में भारतीय एजेंसियों की कथित संलिप्तता का आरोप लगाया, तब दोनों देशों के बीच राजनयिक संकट गहरा गया।
  • जस्टिन ट्रूडो की घरेलू राजनीति और रणनीति ट्रूडो की सरकार अल्पमत में है और सिख समुदाय का समर्थन उनके लिए बेहद जरूरी है। भारत पर यह आरोप लगाने का एक उद्देश्य घरेलू राजनीतिक फायदा उठाना भी हो सकता है। लेकिन ट्रूडो के आरोपों को अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देशों का समर्थन मिलना भारत के लिए एक चिंताजनक संकेत है।

India-Canada issue: ने खोली कमजोर विदेश नीति की पोल

  1. टकराव-प्रधान कूटनीति का बढ़ता रुझान:
    मोदी सरकार की विदेश नीति का प्रमुख पहलू आक्रामक रुख और शक्ति प्रदर्शन रहा है, चाहे वह चीन, पाकिस्तान, या अब कनाडा के साथ संबंधों में हो। हालांकि, इस बार यह रणनीति उल्टी पड़ती नजर आ रही है, क्योंकि पश्चिमी देशों ने कनाडा के आरोपों को गंभीरता से लिया है।
  2. बहुपक्षीय मंचों पर कमजोर संतुलन:
    भले ही भारत ने हाल के वर्षों में G20 जैसे मंचों पर मजबूत प्रदर्शन किया हो, लेकिन इस विवाद में पश्चिमी देशों का झुकाव ट्रूडो की ओर दिखाता है कि भारत अभी भी अपनी विदेश नीति में संतुलन स्थापित करने में असफल रहा है।
  3. राजनयिक संवाद का अभाव:
    विदेश नीति में संवाद का अभाव मोदी सरकार की प्रमुख कमजोरियों में से एक है। इस विवाद में भी सरकार ने संवाद और कूटनीतिक समाधान के बजाय सख्त रुख अपनाया, जिससे स्थिति और बिगड़ गई। वीजा सेवाओं को रोकने और कनाडा के अधिकारियों के साथ सहयोग सीमित करने जैसे कदमों ने तनाव को बढ़ावा दिया है।
  4. प्रवासी भारतीयों के साथ संबंधों में गिरावट:
    मोदी सरकार की प्रवासी भारतीय नीति हमेशा से महत्वपूर्ण रही है, लेकिन कनाडा में बसे सिख समुदाय के एक बड़े हिस्से के साथ सरकार का संवाद कमजोर रहा है। इससे न केवल विदेश में भारत की छवि प्रभावित हो रही है, बल्कि ध्रुवीकरण और विभाजन भी गहरा हो रहा है।

भारत-कनाडा विवाद: के देश पर नकारात्मक प्रभाव

  1. अंतरराष्ट्रीय छवि और कूटनीतिक विश्वसनीयता पर असर:
    कनाडा के आरोपों के बाद भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचा है। अमेरिका, ब्रिटेन, और अन्य पश्चिमी देशों का झुकाव ट्रूडो की ओर होना यह दर्शाता है कि भारत की विदेश नीति में विश्वसनीयता की कमी है।
  2. व्यापारिक और शैक्षिक सहयोग पर प्रभाव:
    भारत और कनाडा के बीच कई महत्वपूर्ण व्यापारिक समझौते लंबित हैं। इसके अलावा, बड़ी संख्या में भारतीय छात्र हर साल कनाडा में पढ़ाई करने जाते हैं। इस विवाद से व्यापार, निवेश और शिक्षा के क्षेत्र में दोनों देशों के संबंध प्रभावित हो सकते हैं।
  3. प्रवासी भारतीय समुदाय पर दबाव:
    कनाडा में बसे प्रवासी भारतीय, विशेष रूप से *सिख समुदाय, इस विवाद से सीधे प्रभावित हो रहे हैं। इससे भारत और प्रवासी समुदाय के बीच *भरोसे में कमी आ सकती है, जिससे भारत की प्रवासी नीति को झटका लग सकता है।
  4. आर्थिक और सामरिक साझेदारियों पर दीर्घकालिक प्रभाव:
    यदि यह विवाद जल्द नहीं सुलझता, तो यह आर्थिक और सामरिक साझेदारियों पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। भारत को वैश्विक मंचों पर अलग-थलग पड़ने का खतरा है, जिससे उसकी विकास योजनाओं और अंतरराष्ट्रीय रणनीति को नुकसान हो सकता है।

India-Canada issue: ने मोदी सरकार की विदेश नीति की कमियों और चुनौतियों को उजागर कर दिया है। आक्रामक कूटनीति और शक्ति प्रदर्शन पर आधारित नीति हर बार कारगर नहीं होती। इस विवाद से साफ है कि सरकार को राजनयिक लचीलापन और संवाद आधारित कूटनीति को अपनाने की जरूरत है।

यदि समय रहते संतुलित और दूरदर्शी कूटनीति नहीं अपनाई गई, तो यह विवाद न केवल भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि आर्थिक, सामरिक और प्रवासी संबंधों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालेगा। इस संकट से सबक लेते हुए, भारत को विदेश नीति में नई रणनीति अपनानी होगी, ताकि वह भविष्य में वैश्विक मंचों पर विश्वसनीय और मजबूत साझेदार के रूप में उभर सके।

More From Author

Dev Deepawali of Varanasi

Dev Deepawali of Varanasi: आस्था और रोशनी का संगम

Cancer In India:

Cancer In India: हर साल 14 लाख मामले और 8 लाख मौतें – WHO

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *