Restrictions on Diwali: दिवाली भारत के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो सदियों से अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक रही है। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक ताने-बाने को भी मजबूत करता है। दिवाली का अर्थ घरों और दिलों में रोशनी लाने से है, जिससे समाज में प्रेम, सौहार्द और नई ऊर्जा का संचार होता है।
लेकिन हाल के वर्षों में दिवाली अपने सांस्कृतिक मूल्यों के बजाय सरकारी प्रतिबंधों और पर्यावरण संरक्षण के नाम पर सख्त नियमों की जकड़ में फँसती जा रही है। यह सवाल उठता है कि क्या यह कड़े नियम वास्तव में पर्यावरण बचाने का प्रयास हैं, या केवल दिखावटी कदम हैं जो सालभर प्रदूषण पर कार्रवाई में निष्क्रियता को छुपाने का प्रयास करते हैं?
Restrictions on Diwali: प्रतिबंध और उनका प्रभाव
हर साल दिवाली आते ही सरकारें प्रदूषण रोकने के लिए नए आदेश और दिशा-निर्देश जारी करती हैं। पटाखों पर बैन, छठ पूजा के समय यमुना में झाग को लेकर विवाद, और दीपावली पर रात 10 बजे तक की समय सीमा—ये सब नियम त्योहार की भावना को प्रभावित करने लगे हैं।
सख्ती लगाने वाले प्रमुख राज्य और उनके नियम
- दिल्ली सरकार ने कई वर्षों से दिवाली पर सभी तरह के पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा रखा है। AAP सरकार का कहना है कि दिवाली के पटाखे दिल्ली में वायु प्रदूषण को गंभीर रूप से बढ़ाते हैं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का दावा है कि पड़ोसी राज्यों, विशेषकर हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने का प्रदूषण दिल्ली की हवा को जहरीला बना देता है, लेकिन इसकी चर्चा केवल दिवाली के समय होती है।
- पंजाब और हरियाणा: पंजाब में इस वर्ष केवल ग्रीन पटाखों की अनुमति (Restrictions on Diwali) दी गई है और हरियाणा सरकार ने एनसीआर क्षेत्रों में पूर्ण प्रतिबंध लागू किया है, जबकि बाकी इलाकों में ग्रीन पटाखों की सीमित अनुमति है। विरोधाभास पराली जलाने के मुद्दे पर दोनों राज्यों की सरकारें अक्सर असहाय नजर आती हैं, लेकिन दिवाली के पटाखों पर कड़ा नियंत्रण पर्यावरणीय संवेदनशीलता का दिखावा करता है।
- उत्तर प्रदेश: यूपी में पटाखों पर प्रतिबंध प्रदूषण के स्तर के आधार पर लागू होता है। NCR में प्रतिबंध सख्त है, जबकि अन्य हिस्सों में ग्रीन क्रैकर्स की अनुमति है राजनीतिक संकेत: योगी आदित्यनाथ सरकार दिवाली के धार्मिक महत्व को रेखांकित करते हुए अयोध्या में ‘दीपोत्सव’ का आयोजन बड़े पैमाने पर करती है, लेकिन पटाखों पर सीमित छूट की नीति आलोचना का शिकार बनती है।
- हिमाचल प्रदेश में इस बार केवल ग्रीन पटाखों की अनुमति दी गई है, जो पर्यावरण संरक्षण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दिखाने का प्रयास है। पहाड़ी राज्य में दिवाली के समय प्रदूषण की समस्या तुलनात्मक रूप से कम है, लेकिन फिर भी पर्यावरण के नाम पर प्रतिबंध ने व्यापारियों और जनता में नाराजगी पैदा की है।
राजनीति और पर्यावरण संरक्षण: सिर्फ दिखावा या ईमानदार प्रयास?
यह विडंबना है कि सरकारें दिवाली के समय पर्यावरण संरक्षण के नाम पर सख्त प्रतिबंध लगाती हैं, लेकिन पूरे साल प्रदूषण के अन्य बड़े स्रोतों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं करतीं।
- पराली जलाने का मुद्दा: हर साल अक्टूबर और नवंबर में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर पराली जलाई जाती है, जिससे दिल्ली-एनसीआर की हवा बेहद खराब हो जाती है। इन राज्यों में सरकारें किसानों के दबाव में पराली जलाने पर सख्ती नहीं करतीं, लेकिन दिवाली के पटाखों पर प्रतिबंध लगाकर पर्यावरणीय संवेदनशीलता का ढोंग करती हैं।
- औद्योगिक और वाहनों से प्रदूषण: दिल्ली और आसपास के राज्यों में फैक्ट्रियों से निकलने वाला कचरा और वाहनों से होने वाला प्रदूषण पूरे साल जारी रहता है। यमुना में बढ़ते झाग और जहरीले रसायनों का मुद्दा केवल त्योहारों के समय सुर्खियों में आता है, ताकि सरकारें धार्मिक आयोजनों पर प्रतिबंध का औचित्य साबित कर सकें।
- राजनीतिक एजेंडा और बयानबाज़ी: प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर एक राज्य सरकार दूसरी पर आरोप लगाती है। AAP सरकार दिल्ली के प्रदूषण के लिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश को जिम्मेदार ठहराती है, जबकि भाजपा शासित राज्य दिल्ली की नीतियों पर सवाल उठाते हैं। यह साफ है कि पर्यावरणीय मुद्दे केवल त्योहारों के समय ही राजनीतिक लाभ के लिए उछाले जाते हैं, जबकि पूरे साल इन पर कोई ठोस नीति नहीं बनाई जाती।
Restrictions on Diwali: व्यापारियों और आम जनता पर असर
दिवाली के दौरान प्रतिबंधों का सबसे ज्यादा असर छोटे व्यापारियों और पटाखा उद्योग पर पड़ा है। भारत में पटाखा उद्योग लाखों लोगों को रोजगार देता है, लेकिन प्रतिबंधों के कारण यह उद्योग हर साल नुकसान झेल रहा है। छोटे व्यापारी दिवाली के समय मिठाई, सजावट और पूजा सामग्री की बिक्री पर भी प्रतिबंधों का असर दिखाई देता है, क्योंकि नियमों के कारण लोग त्योहार मनाने में कम रुचि दिखा रहे हैं।
प्रतिबंध से पर्यावरण बचेगा या सिर्फ परंपराएँ कमजोर होंगी?
दिवाली पर लगाए गए प्रतिबंध पर्यावरण संरक्षण का स्थायी समाधान नहीं हैं। यह स्पष्ट है कि त्योहारों पर सख्ती दिखाकर सरकारें केवल अपनी राजनीतिक छवि चमकाने का प्रयास करती हैं, जबकि सालभर प्रदूषण के अन्य बड़े स्रोतों पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जाता। जरूरत इस बात की है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए ठोस और दीर्घकालिक नीतियाँ बनाई जाएँ, जो पूरे साल लागू रहें। केवल त्योहारों पर प्रतिबंध लगाकर न तो पर्यावरण सुधरेगा और न ही जनता का विश्वास कायम रहेगा।
दिवाली जैसे पर्वों का महत्व हमारी सांस्कृतिक धरोहर में गहरा है, और इसे सरकारी नियमों के बोझ तले खत्म नहीं होने देना चाहिए। सरकारों को यह समझना होगा कि प्रदूषण से लड़ने के लिए स्थायी समाधान जरूरी हैं, न कि केवल दिवाली पर प्रतिबंधों का दिखावा। त्योहारों पर सख्ती के बजाय प्रदूषण के हर स्रोत पर सालभर कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ न केवल स्वस्थ पर्यावरण में साँस ले सकें, बल्कि अपनी परंपराओं को भी जीवित रख सकें।