उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: तीन दलों के बॉयकॉट से बदला सत्ता का गणितदिल्ली की राजनीति में इस वक्त सबसे बड़ा सवाल यही है—आख़िर उपराष्ट्रपति चुनाव में बने हालात किसके पक्ष में जाएंगे और किसके खिलाफ?
जहाँ सत्ता पक्ष इसे अपनी पकड़ मजबूत करने का मौका मान रहा है, वहीं विपक्ष इसे “लोकतंत्र की असली परीक्षा” कहकर पेश कर रहा है। लेकिन इस बार का समीकरण थोड़ा उलझा हुआ है, क्योंकि तीन अहम राजनीतिक दलों ने वोटिंग से बाहर रहने का ऐलान किया है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि उनकी गैर-मौजूदगी किसके लिए फ़ायदे का सौदा बनेगी और किसके लिए सिरदर्द।
संविधान और उपराष्ट्रपति का महत्व
संविधान के अनुच्छेद 63 के तहत उपराष्ट्रपति का पद स्थापित किया गया है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं और राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उनका स्थान लेते हैं। यानी ये सिर्फ़ ‘औपचारिक पद’ नहीं बल्कि संसदीय राजनीति की धुरी हैं।
कई बार संसद में गतिरोध की स्थिति में उपराष्ट्रपति का रुख़ सरकार या विपक्ष दोनों के लिए निर्णायक साबित होता है।
उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: इस चुनाव की राजनीतिक अहमियत
सत्ता पक्ष (NDA/भाजपा) : अपने उपराष्ट्रपति उम्मीदवार की जीत से वह न सिर्फ़ संसद के उच्च सदन में अपनी पकड़ मज़बूत करेगा, बल्कि 2029 की राजनीति का रोडमैप भी तैयार करेगा।
विपक्ष (INDIA गठबंधन/अन्य) : यह चुनाव उनके लिए “मोदी बनाम विपक्ष” नैरेटिव को मजबूत करने का मौका है। भले ही नंबर उनके पास कम हों, लेकिन वे एकजुटता का संदेश देकर राजनीतिक लाभ उठाना चाहते हैं।
तीन दलों का बाहर रहना—किसके लिए वरदान, किसके लिए संकट?
तीन बड़े दलों (नाम मान लें—AIADMK, BJD और YSRCP जैसे क्षेत्रीय खिलाड़ी) ने मतदान से दूर रहने का ऐलान किया है। इनकी गैर-मौजूदगी का असर ऐसे पड़ेगा:
- सत्ता पक्ष का फायदा
- NDA के लिए यह राहत की बात है क्योंकि विपक्ष को संभावित समर्थन देने वाले वोट अपने आप कम हो गए।
- संख्या का खेल जितना घटता है, सत्ता पक्ष के लिए उतनी आसानी से जीत की राह खुलती है।
- विपक्ष की मुश्किलें
- विपक्ष जिस “बड़े गठबंधन” की तस्वीर दिखाना चाहता था, उसमें सेंध लग गई।
- बाहर हुए दल भले ही खुलकर NDA का समर्थन न कर रहे हों, लेकिन उनका “न्यूट्रल” रहना विपक्ष के लिए नुकसानदेह है।
उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: भविष्य की डील पॉलिटिक्स
इन दलों का बाहर रहना यह संकेत भी देता है कि वे आने वाले वक्त में “बड़ा खेल” करने की तैयारी में हैं।
चुनाव न लड़कर उन्होंने अपनी पोज़ीशन ऐसी बना ली है कि ज़रूरत पड़ने पर NDA या विपक्ष, दोनों से बेहतर सौदेबाज़ी कर सकें।
राजनीतिक संदेश और नैरेटिव
BJP/NDA इस नतीजे को “राष्ट्रहित में एकजुटता” के तौर पर पेश करेगा।
विपक्ष इसे “डर और दबाव की राजनीति” का नतीजा बताएगा।
लेकिन जनता की नज़र में बड़ा सवाल यही रहेगा—क्या उपराष्ट्रपति का चुनाव भी “2029 लोकसभा चुनाव की तैयारी” बन चुका है?
उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: निष्कर्ष
उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 भले ही सीधे जनता को प्रभावित न करता हो, लेकिन इसका असर पूरे राजनीतिक परिदृश्य पर गहरा होता है। तीन दलों के बाहर रहने से समीकरण बदल चुके हैं।
सत्ता पक्ष के लिए यह गेम-मेकर साबित हो सकता है, जबकि विपक्ष के लिए यह गेम-ब्रेकर है।
आगे आने वाले दिनों में यही फैसला करेगा कि कौन-सा नैरेटिव लोगों तक गूंजता है—“स्थिरता की राजनीति” या “संविधान बचाओ की लड़ाई”।